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Posts Tagged ‘sad songs’

“झील को दर्पण बना “रात  के स्वर्णिम पहर में
झील को दर्पण बना

चाँद जब बादलो से निकल
श्रृंगार करता होगा
चांदनी का ओढ़ आँचल
धरा भी इतराती तो होगी…

मस्त पवन की अंगडाई
दरख्तों के झुरमुट में छिप कर

परिधान बदल बदल
मन को गुदगुदाती तो होगी…..
नदिया पुरे वेग मे बह
किनारों से टकरा टकरा

दीवाने दिल के धड़कने का
सबब सुनाती तो होगी …..
खामोशी की आगोश मे रात
जब पहरों में ढलती होगी
ओस की बूँदें दूब के बदन पे
फिसल लजाती तो होगी ……

दूर बजती किसी बंसी की धुन
पायल की रुनझुन और सरगम
अनजानी सी कोई आहट आकर
तुम्हे मेरी याद दिलाती तो होगी…..


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अमानत

अमानत

अमानत मे अब और खयानत ना की जाए ,

आहें-शरर -फीशां आज उन्हें लौटाई जाए…

हिज्र-ऐ-यार मे जो हुआ चाक दामन मेरा,

दरिया-ऐ-इजतराब उनके सामने ही बहाई जाए

(आहें-शरर -फीशां – चिंगारियां फैंकने वाली आहें
हिज्र-ऐ-यार – प्रेमी का विरह
दरिया-ऐ-इजतराब- बेचेनी का दरीया)

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9/22/2008

“तस्सली”

“तस्सली”

रात भर जागी आँखों को,
ऐ काश वो तस्सली देता,
“हम सोये क्युं नही” जो
एक बार ही पूछा होता…….

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मेरे पास

“मेरे पास”


रूह बेचैन है यूँ अब भी सनम मेरे पास,
तू अभी दूर है बस एक ही ग़म मेरे पास
रात दिन दिल से ये आवाज़ निकलती है के सुन
आ भी जा के है वक्त भी कम मेरे पास
तू जो आ जाए तो आ जाए मेरे दिल को करार,
दूर मुझसे है तू दुनिया के सितम मेरे पास
दिल में है मेरे उदासी, के है दुनिया में
कहकहे गूँज रहे आँख है नम मेरे पास”

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“शबे-फुरकत”

“शबे-फुरकत”

” शबे-फुरकत थी ,
“और”
जख्म – पहलु में,
कोहे – गम ने की ,
शब- बेदारीयाँ हमसे…
(शबे फुरकत- विरह की रात ,

कोहे – गम- दुःख का पहाड़ ,
शब – बेदारीयाँ – रात को जागना )

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“अपलक”

“अपलक”

बिना झपकाए मैं,
अपलक देखूं,
तुम को देखने की,
अपनी ललक देखूं

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तुम्हारी याद है

एक तरफ़ तुम हो तुम्हारी याद है,
दूसरी जानिब ये दुनिया है कोई बरबाद है,
तीसरी जानिब कोई मासूम सी फरियाद है .
वस्ल के लम्हों में भी तनहा रहे,
तुम को गुज़रे वक्त याद आते रहे,
तुम से मिल कर भी तो दिल नाशाद है ……
दर्द-ओ-गम की ताब जो न ला सके,
वो कहाँ दिल को कहीं बहला सके,
पास आकर भी तुम्हें ना पा सके,
इश्क में तेरे ये दिल बर्बाद है…….
एक तरफ़ तुम हो तुम्हारी याद है…………..

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9/12/2008

“आंख भर के”

ना आंख भर के देखा ही किए ,
ना सरगोशीयों की कोई बारात थी ,
मुद्दत से जिसकी तडपते रहे
क्या ये वही मुलाकत थी …????

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“आशनाई “


‘नज़र से नज़र”
कभी मिलाई तो होती….
दिल की बात कभी हमसे भी,
बनाई तो होती….
क्यूँ कर रही शबे-फुरकत से’
आशनाई सारी रात…..
कभी मेरी तरह अंधेरों मे,
“आईने से आंख लडाई तो होती “

(शबे फुरकत- विरह की रात )

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9/10/2008

“दरिया की कहानी “

 

चश्मे-पुरआब के आगे,
क्या होगी किसी दरिया की रवानी,
रु-ऐ-चश्मतर के आगोश मे पढ़ ले,
हर दरिया की कहानी
(रु-ऐ-चश्मतर- भीगी आंख)
(चश्मे-पुरआब- आंसू भरी आँख)

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“बहाने से ही आ ”

 

 

 

 

 

 

“बहाने से ही आ ”

मेरी मोह्हब्ब्त का सिला मुझको मिले कुछ ऐसे ,

तुझे पाने की तम्मना मैं जीना दुशवार हो जाए ,

आज तू मुझे खाक मे मिलाने के बहाने से ही आ .

तेरी यादों का पहरा मेरी धड़कन पे अब ना रहे ,

मेरे हाथों से तेरा दामन भी कुछ छुट जाए ऐसे ,

आज तू मुझपे इतने सितम ढाने के बहाने से ही आ .

इन निगाहों के सिसकते इंतजार बिखर जायें कुछ ऐसे ,

की मेरी आंखों की नमी भी छीन जाए मुझसे ,

आज तू मुझे यूं बेइन्तहा रुलाने के बहाने से ही आ .

ये दिल एक पल मे टूट के बिखर जाए कुछ इस तरह ,

की मेरी हर एक आरजू और उम्मीद का जनाजा निकले,

आज तू मुझे इस कदर ठुकराने के बहाने से ही आ

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“प्यार बेपनाह “

ज़िंदगी भर गुनाह करते रहे
हम जो उनसे निबाह करते रहेबेवफाई की चोट खाई थी
जिन्दिगी को तबाह करते रहेकौन था रास्ता जो दिखलाता
हम अंधेरों में राह करते रहे

तुमको दुल्हन बना के ख्वाबों में
रोज़ तुमसे निकाह करते रहे

जानी मालूम है की हम तुमसे
प्यार थे बेपनाह करते रहे

 

 

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जिदगी भर यही सोचता रह गया”



मुझसे मुंह मोड़ कर तुम को जाते हुए,
मूक दर्शक बना देखता रह गया ,
क्या मिला था तुम्हें दिल मेरा तोड़ कर,
जिंदगी भर यही सोचता रह गया ???

भूलने के लिये तुमको हम ने जतन,
क्या नहीं हैं किये ए जान-ऐ-मन,
उतने ही याद आये हो तुम रात दिन,
अपनी यादों से मैं जूझता रह गया???
रास्ता जब बनी रास्ते की गली,
मैं जो गुजरा कभी धडकने बढ़ गयी,
एक खिड़की खुली और तुम्हें देख कर,
मैं जहाँ पर खडा था खडा रह गया???
जिदगी भर यही सोचता रह गया”

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काफी है “

 
वफ़ा का मेरी अब और क्या हसीं इनाम मिले मुझको,
जिन्दगी भर दगाबाजी का सिर पे एक इल्जाम काफी है.
बनके दीवार दुनिया के निशाने खंजर से बचाया था,
होठ सी के नाम को भी राजे दिल मे छुपाया था,
उसी महबूब के हाथों यूं नामे-ऐ -बदनाम काफी है …
यादों मे जागकर जिनकी रात भर आँखों को जलाते थे ,
सोच कर पल पल उनकी बात होश तक भी गवाते थे ,
मुकाम-ऐ- मोह्हब्त मे मिली तन्हाई का एहसान काफी है….
 
कभी लम्बी लम्बी मुलाकतें, और सर्द वो चांदनी रातें,
चाहत से भरे नगमे अब वो अफसाने अधुरें है ,
जीने को सिर्फ़ जहर –ऐ – जुदाई का ये भी अंजाम काफी है

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“नयी”


“ज़िंदगी” हो तुम्हारे साथ नयी,
दिन नया हो हमारी रात नयी…..
पिछली बातों को भूल जाएँ हम,
जब भी हो बात सारी बात नयी…….
अब न आयें वो दिन गुज़र जो गए,
हर घड़ी हो तुम्हारे साथ नयी……..
हम पुराने रिवाज ठुकरादें,
सारे रिश्तों की सारी जात नयी ……..

आज बिछने दो ज़िंदगी की बिसात,
न शह हो जहाँ ना मात नयी…..
वो जो तुमसे है दिल लगा बैठा ,
तेरे घर लाएगा बारात नयी….

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“अय्याम ने”

“अय्याम ने”
मैं यहाँ बेचैन हूँ तुम वहाँ बेताब हो,
किस जगह लाकर मिलाया है हमें अय्याम ने…
हों कई ऐसे भी जो रहते रहे हो इस तरह,
और रुबाई हो लिखी कोई उमर खय्याम ने…
रात भर जागा किए हैं तेरी यादों के तुफैल,
कितने ख्वाबों को बुना है इस दिले नाकाम ने…
तेरे आने की ख़बर हैं दिल में जागी है उमंग,
कितने दीपक ला जला डाले हैं मेरी शाम ने…
याद करने को नहीं आता है दिल दुःख के वह दिन,
और क्यों तमको नहीं लिखा है मेरे नाम ने….
फिर भि फरमाइश किया है उसको मेरी जान ने,
और किया बदनाम दानी को है उसके काम ने…
अब तड़पता दिल है दानी का बहुत उसके लिये,
कह रहा है तुमसे आ जाओ अचानक मेरे सामने…

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