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Posts Tagged ‘poem’

“झील को दर्पण बना “रात  के स्वर्णिम पहर में
झील को दर्पण बना

चाँद जब बादलो से निकल
श्रृंगार करता होगा
चांदनी का ओढ़ आँचल
धरा भी इतराती तो होगी…

मस्त पवन की अंगडाई
दरख्तों के झुरमुट में छिप कर

परिधान बदल बदल
मन को गुदगुदाती तो होगी…..
नदिया पुरे वेग मे बह
किनारों से टकरा टकरा

दीवाने दिल के धड़कने का
सबब सुनाती तो होगी …..
खामोशी की आगोश मे रात
जब पहरों में ढलती होगी
ओस की बूँदें दूब के बदन पे
फिसल लजाती तो होगी ……

दूर बजती किसी बंसी की धुन
पायल की रुनझुन और सरगम
अनजानी सी कोई आहट आकर
तुम्हे मेरी याद दिलाती तो होगी…..


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“वहीं पर तुम जहाँ हो काग़जों पर”

 

हीं पर तुम जहाँ हो काग़जों पर,
वहीं मैं आजकल रहने लगा हूँ …….
जिगर के दिल के हर एक दर्द से मैं,
रवां दरिया सा इक बहने लगा हूँ …….

सुना दी आईने ने दिल की बातें,

तुम्हे मैं आजकल पहने लगा हूँ ………
तुम्हारे साथ हूँ जैसे अज़ल से,
तुम्हारी बात मैं कहने लगा हूँ……..

सुनी सीमा हमारे दिल की बातें ???
तुम्हीं से तो मैं सभी कहने लगा हूँ……….

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विरह का रंग

आँखों मे तपीश और रूह की जलन,
बोजिल आहें , खामोशी की चुभन,
सिमटी ख्वाईश , सांसों से घुटन ,
जिन्दा लाशों पे वक्त का कफ़न,
कितना सुंदर ये विरह का रंग

(विरह का क्या रंग होता है यह मैं नही जानती . लेकिन इतना ज़रूर है की यह रंग -हीन भी नही होता और यह रंग आँखें नही दिल देखता है)

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‘तेरा आना और लौट जाना’

 

दो लफ्जों मे वो तेरा मुझे चाहना ,
गुजरते लम्हों मे मुझे ही दोहराना…
आँखों के कोरों मे दबा छुपा के जो रखे,
उन अश्कों मे अपनी पलकों को भिगो जाना…
रूह का एहसास था या सपने का भ्रम कोई ,
नीदों मे मुझे चुपके से अधरों से छु जाना…
सच के धरातल का मौन टुटा तो समझा…
शून्य था तेरा आना “और”
एक सवाल यूँ ही लौट जाना…

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“मंजिल”

मंजिल

मंजिल नहीं थी कोई मगर गामज़न हुए
ख़ुद राह चुन के तेरी तमन्ना लिए हुए
फिर साया मेरा देके दगा चल दिया किधर
हम आईने को तकते रहे जाने किस लिए
दिलदार ने भुला दिया पर हमने उसको यूँ
सजदे सुकून-ऐ-दिल के लिए कितने कर लिए
अल्फाज़ धोका दे गए जब आखिरश हमें
हमने भी उम्र भर के लिए होंठ सी लिए

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सजा

“सजा”

आज ख़ुद को एक बेरहम सजा दी मैंने ,
एक तस्वीर थी तेरी वो जला दी मैंने
तेरे वो खत जो मुझे रुला जाते थे
भीगा के आंसुओं से उनमे भी,
” आग लगा दी मैंने …”

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कैसे भूल जाए

 

जिन्दगी की ढलती शाम के ,
किसी चोराहे पर,
तुमसे मुलाकात हो भी जाए…
“वो दर्द-ऐ-गम”,
तेरे लिए जो सहे मैंने,
उनको दिल कैसे भूल जाए…

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“फर्जे-इश्क “

बेजुबानी को मिले कुछ अल्फाज भी अगर होते
पूछते कटती है क्यूँ आँखों ही आँखों मे सारी रात ..,
सनम-बावफा का क्या है अब तकाजा मुझसे ,
अपना ही साया है देखो लिए पत्थर दोनों हाथ ….
पेशे-नजर रहा महबूब-ऐ-ख्याल गोश-ऐ-तन्हाई मे,
आईना क्यूँ कर है लड़े फ़िर मुझसे ले के तेरी बात…
दिले-बेताब को बख्श दे अब तो सुकून-ऐ-सुबह,
दर्दे-फिराक ने अदा किया है फर्जे-इश्क सारी रात…

(सनम-बावफा – सच्चा-प्रेमी )
(पेशे-नजर – आँखों के सामने)
(गोश-ऐ-तन्हाई -एकांत)
(दर्दे-फिराक -विरह का दर्द)
(फर्जे-इश्क – प्रेम का कर्तव्य)

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“तलब”

ख़ुद को आजमाने की एक ललक है ,
एक ग़ज़ल तुझ पे बनाने की तलब है…
लफ्ज को फ़िर आसुओं मे भिगो कर,
तेरे दामन पे बिछाने की तलब है …
आज फ़िर बन के लहू का एक कतरा,
तेरी रगों मे दौड़ जाने की तलब है …
अपने दिल-ऐ-दीमाग से तुझ को भुलाकर,
दीवानावार तुझको याद आने की तलब है…
दम जो निकले तो वो मंजर तू भी देखे

रुखसती मे तुझसे नजर मिलाने की तलब है…

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“तेरी चाहत”



तेरी हर अदा पे मुझे बस प्यार आता है,
जब मेरे साथ तू होती है करार आता है …
तेरी आँखें है सनम, या के हैं जाम-ऐ-शराब,
तेरी नज़रों को मैं देखूं तो खुमार आता है…
तू मेरे सामने है, ख्वाब हो , बेदारी हो,
अपनी बांहों में लिए तुझ को चला जाता हूँ …
तुझ से मिलने पे जो आ जाए जुदाई का ख़याल,
दिल में तूफ़ान सा उठता ही चला जाता है…
तेरी चाहत की मेरे दिल में है हद कितनी,
कहाँ ग़ज़लों में या अल्फाज़ में कह पाता हूँ ..

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9/22/2008

“तस्सली”

“तस्सली”

रात भर जागी आँखों को,
ऐ काश वो तस्सली देता,
“हम सोये क्युं नही” जो
एक बार ही पूछा होता…….

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“शबे-फुरकत”

“शबे-फुरकत”

” शबे-फुरकत थी ,
“और”
जख्म – पहलु में,
कोहे – गम ने की ,
शब- बेदारीयाँ हमसे…
(शबे फुरकत- विरह की रात ,

कोहे – गम- दुःख का पहाड़ ,
शब – बेदारीयाँ – रात को जागना )

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“जूनून-ऐ-इश्क”


“जूनून-ऐ-इश्क
जूनून की बात निकली है तो मेरी बात भी सुन लो,
जूनून-ऐ-इश्क सच्चा है तो फिर हारा नहीं करता
मुक़द्दस है जगह वो क्यूंकि घर माशूक का है वो,
कोई मजनूँ कभी भी अपना दिल मारा नहीं करता
तजस्सुस यह के वोह बोलेगा सच या झूट बोलगा,
जूनून में रह के कोई काम यह सारा नही करता
वो मजनू है और उसके दिल में ही है बसी लैला,
हर एक हूरे नज़र पर अपना दिल वारा नहीं करता
 

 

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“अपलक”

“अपलक”

बिना झपकाए मैं,
अपलक देखूं,
तुम को देखने की,
अपनी ललक देखूं

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“निगाहे-नाज़”

 

“निगाहे-नाज़”

बेज़ारी जान की थी या,

किसी गम की गीरफ्तारी थी,

अंधेरी रात मे भी,

” रोशन रूखे- यार देखा”

शायद ये निगाहे-नाज़ की

 बीमारी थी

(बेज़ारी – उदासीनता )

(रूखे- यार – प्रेमिका का चेहरा)

(निगाहे-नाज़ – चंचल आँख)

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9/12/2008

“आंख भर के”

ना आंख भर के देखा ही किए ,
ना सरगोशीयों की कोई बारात थी ,
मुद्दत से जिसकी तडपते रहे
क्या ये वही मुलाकत थी …????

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“आशनाई “


‘नज़र से नज़र”
कभी मिलाई तो होती….
दिल की बात कभी हमसे भी,
बनाई तो होती….
क्यूँ कर रही शबे-फुरकत से’
आशनाई सारी रात…..
कभी मेरी तरह अंधेरों मे,
“आईने से आंख लडाई तो होती “

(शबे फुरकत- विरह की रात )

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9/10/2008

“दरिया की कहानी “

 

चश्मे-पुरआब के आगे,
क्या होगी किसी दरिया की रवानी,
रु-ऐ-चश्मतर के आगोश मे पढ़ ले,
हर दरिया की कहानी
(रु-ऐ-चश्मतर- भीगी आंख)
(चश्मे-पुरआब- आंसू भरी आँख)

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फिर वही आतिशफिशानी कर रही उसकी अदा
फिर वही मदिरा पिला डाली है उसके जाम ने ……….

जब भी गुज़रा वो हसीं पैकर मेरे इतराफ़ से

दी सदा उसको हर एक दर ने हर एक बाम ने……

एक अजब खामोश सा एहसास था दिल में मेरे

उसका नज़ारा किया है पहले हर इक गाम ने…

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मेरे एहसास में तू रहती है,

मेरे जज्बात में तू रहती है
आँखों मे सपना की जगह
मेरे ख़यालात में तू रहती है

लोग समझते हैं के वीराना है

पर मेरे साथ में तू रहती है

दम घुटता है जब रुसवाई मे ,

मेरी हर साँस मे तू रहती है
दुख का दर्पण , विरहन सा मन

मेरे हर हालात मे तू रहती है

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“क्या हुआ जो ये रात,
“कुछ”
शिकवो शिकायतों के साथ गुजरी ,
क्या हुआ जो अगर ये रात,
आंसुओ के सैलाब से बह कर गुजरी ,
गौर -ऐ -तलब” है के ये रात,
आप के ख्यालात के साथ गुजरी

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आप की यादों का काफिला,
कुछ इस तरह से,
मेरे साथ चलता है,

” की”

आप से हर रोज

मुलाकात हो जाती है

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“इल्जाम ले लो”


“इल्जाम ले लो”
ज़ब्त से कुछ काम ले लो,
ख़ुद पे यह इल्जाम ले लो…
जिसका डर था हो न जाए,
उसको अपने नाम ले लो .
कुछ नशा है उखडा उखडा,
आओ हम से जाम ले लो …
गिर न जाएं देखना तुम ,
अपने हाथों थाम ले लो…
नाम मेरा क्या करोगी ,
आशिके बदनाम ले लो “

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“बहाने से ही आ ”

 

 

 

 

 

 

“बहाने से ही आ ”

मेरी मोह्हब्ब्त का सिला मुझको मिले कुछ ऐसे ,

तुझे पाने की तम्मना मैं जीना दुशवार हो जाए ,

आज तू मुझे खाक मे मिलाने के बहाने से ही आ .

तेरी यादों का पहरा मेरी धड़कन पे अब ना रहे ,

मेरे हाथों से तेरा दामन भी कुछ छुट जाए ऐसे ,

आज तू मुझपे इतने सितम ढाने के बहाने से ही आ .

इन निगाहों के सिसकते इंतजार बिखर जायें कुछ ऐसे ,

की मेरी आंखों की नमी भी छीन जाए मुझसे ,

आज तू मुझे यूं बेइन्तहा रुलाने के बहाने से ही आ .

ये दिल एक पल मे टूट के बिखर जाए कुछ इस तरह ,

की मेरी हर एक आरजू और उम्मीद का जनाजा निकले,

आज तू मुझे इस कदर ठुकराने के बहाने से ही आ

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“प्यार बेपनाह “

ज़िंदगी भर गुनाह करते रहे
हम जो उनसे निबाह करते रहेबेवफाई की चोट खाई थी
जिन्दिगी को तबाह करते रहेकौन था रास्ता जो दिखलाता
हम अंधेरों में राह करते रहे

तुमको दुल्हन बना के ख्वाबों में
रोज़ तुमसे निकाह करते रहे

जानी मालूम है की हम तुमसे
प्यार थे बेपनाह करते रहे

 

 

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जिदगी भर यही सोचता रह गया”



मुझसे मुंह मोड़ कर तुम को जाते हुए,
मूक दर्शक बना देखता रह गया ,
क्या मिला था तुम्हें दिल मेरा तोड़ कर,
जिंदगी भर यही सोचता रह गया ???

भूलने के लिये तुमको हम ने जतन,
क्या नहीं हैं किये ए जान-ऐ-मन,
उतने ही याद आये हो तुम रात दिन,
अपनी यादों से मैं जूझता रह गया???
रास्ता जब बनी रास्ते की गली,
मैं जो गुजरा कभी धडकने बढ़ गयी,
एक खिड़की खुली और तुम्हें देख कर,
मैं जहाँ पर खडा था खडा रह गया???
जिदगी भर यही सोचता रह गया”

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“तुम्हें पा रहा हूँ”


तुम्हें खो रहा हूँ तुम्हें पा रहा हूँ,
लगातार ख़ुद को मैं समझा रहा हूँ….

ना जाने अचानक कहाँ मिल गयीं तुम,
मैं दिन रात तुमको हे दोहरा रहा हूँ……..

शमा बन के तुम सामने जल रही हो,
मैं परवाना हूँ और जला जा रहा हूँ ….
तुम्हारी जुदाई का ग़म पी रहा हूँ,
युगों से मैं यूँ ही चला जा रहा हूँ…

अभी तो भटकती ही राहों में उलझा,
नहीं जानता मैं कहाँ जा रहा हूँ….

नज़र में मेरे बस तुम्हारा है चेहरा,
नज़र से नज़र में समां जा रहा हूँ……

बेकली बढ़ गयी है सुकून खो गया है,
तुझे याद कर मैं तड़प जा रहा हूँ……….

कहाँ हो छुपी अब तो आ जाओ ना तुम,
मैं आवाज़ देता चला जा रह हूँ ……..

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आज


जैसे कुछ दिल बदल गया हो आज,
यार ख़ुद से बहल गया हो आज,
तुम अगर सुन नही रहे हो बात,
मेरा दिल क्यूँ मचल गया हो आज ?
क्या पता खत लिख नही पाता,
या नई चाल चल गया हो आज,
क्यूँ ये मौसम भी खुशगवार नही,
हवा का रुख बदल गया हो आज !
एक नशा था उतर नही पाता,
तेरे रुख से संभल गया हो आज,
क्यूँ ये मुझ से ही हो नहीं पाता,
कोई दिल से निकल गया हो आज !

तुम को चाहा है तुम से प्यार किया,
प्यार सदियों का मिल गया हो आज,
मालिकुल्मौत आए गर दानी,
मौत का वक्त टल गया हो आज !

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वापस



बड़ी झूमती कविता मेरे आगोश में आयी है,
शायद तेरे साए से यह धूप चुरा लाई है ,
हम तेरे तसव्वुर में दिन रात ही रहते हैं,
कातिल है अदाएं तेरी कातिल ये अंगडाई है
सूरज जो उगा दिल का, दिन मुझमें उतर आया
तुम साथ ही थे लेकिन देखा मेरी परछाईं है,
साथ मेरे रहने है कोई चला आया ,
तन्हा कहाँ अब हम पास दिलकश तन्हाई है..
खामोशी से सहना है तूफ़ान जो चला आया,
दिल टूटा अगर टूटा , कहने मे रुसवाई है..
अब रात का अंधियारा छाने को उभर आया,
एहसास हुआ पुरवा तुमेह वापस ले आयी है

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“उस पार मिलूंगा”

 

 

 

 

 

 “उस पार मिलूंगा”

पग प्रतीक प्रतिबिम्ब रहित हूँ,
उलका के उस पार मिलूंगा……..
मन स्वतंत्र चंचल चितवन हूँ ,
गगन द्वीप जा बैठूंगा….
या फिर उस पथ पर,
जिस पर तुम आओगे …..

प्रेम प्रतीक्षा के प्रसंग में यह पाओगे ,
आशा प्रकाश प्रज्ज्वलित नयन से,
राही भटका —चलता हूँगा
“सोच रहा हूँ………! “

 

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“कैसे करूं”

 

 

 

 

 

 

 

 

“कैसे करूं”

शब्दों मे बयान कैसे करूं , दर्दे दिल का कैसे नीबाह करूं ,

जो अश्क का दरिया जम सा गया , आंखों से उसका कैसे बहा करूं ?????????

ना सुकून मिले , ना चैन कहीं , ना दिन हो मेरा ना रैन कहीं ,

अब दिल को क्या समझाऊं मैं , पल पल की बेचनी कहाँ रफा करूं ?????????

सब बिखर गया . सब उजड़ गया , कुछ भी तो मेरे पास नही ,

दिल जल कर ऐसा ख़ाक हुआ , अब क्या लाऊं और क्या तबाह करूं ????????????

तेरी बातों पे तेरे वादों पे बंद आँखों से मैंने क्यों इतना किया यकीन,

तुझे चाहने से भी ज्यादा बढा लगे , अब और ऐसा मैं क्या गुनाह करूं ?????????


 

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मैं”

कलमों के टूटे ढेर थे मैं छेड़ता रहा,
लफ्जों के हेर फेर ने समझा नहीं मुझे….
कच्ची थी सोंधी ख़ाक में मैं बोलता रहा ,
चाकों के एतबार ने चूप्का किया मुझे…
लौहएमकान का का राज़ था क्यों फाश हो गया ,
कुत्बों के इन्तखाब ने रुसवा किया मुझे … ..
खारे -चमन था लेकिन चुप चाप जी गया ,
कलियों की बेकली ने तड़पा दिया मुझे ….

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काफी है “

 
वफ़ा का मेरी अब और क्या हसीं इनाम मिले मुझको,
जिन्दगी भर दगाबाजी का सिर पे एक इल्जाम काफी है.
बनके दीवार दुनिया के निशाने खंजर से बचाया था,
होठ सी के नाम को भी राजे दिल मे छुपाया था,
उसी महबूब के हाथों यूं नामे-ऐ -बदनाम काफी है …
यादों मे जागकर जिनकी रात भर आँखों को जलाते थे ,
सोच कर पल पल उनकी बात होश तक भी गवाते थे ,
मुकाम-ऐ- मोह्हब्त मे मिली तन्हाई का एहसान काफी है….
 
कभी लम्बी लम्बी मुलाकतें, और सर्द वो चांदनी रातें,
चाहत से भरे नगमे अब वो अफसाने अधुरें है ,
जीने को सिर्फ़ जहर –ऐ – जुदाई का ये भी अंजाम काफी है

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“दर्द की गहराई में”

“दर्द की गहराई में”

“तुम मेरे साथ चलो”

दर्द की गहराई में ,

वो जो है सामने दिखता

“कोई”

तन्हाई में ,तन बचाता हुआ ,

सिकुडा हुआ ‘डूब” जाता हुआ,

अफसोस में रुसवाई में……….

तुम्हें मालूम है “किसने” था,
किया काम उसका ,
किसको रोता है ,तड़पता ,
दिल -ऐ -नाकाम उसका ,
मुंह छुपाता हुआ , पछताता हुआ ,
क्योंकि अब नाम था बदनाम उसका….
प्यार” की हार में,
सब हार गया था जैसे ,
हाथ से छुट के पतवार गया था जैसे ,
“सिर झुकाये है “
हर हुक्म बजा लाने को ,
अपनी ख्वाहिश को………
सभी मार गया था जैसे “…………

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“तुम ने

“तुम ने मुझे अपनाया है”
” और”
मेरी कायनात को ………….
मेरी खुशी को गम को,
“और”
मेरी हयात को…….
अब तो खुशी से,
जीना भी आसान हो गया ….
“तुम ने”

जो अपना हाथ दिया मेरे हाथ को “………

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टीस

लम्हा लम्हा तेरे साये को सीने से लगाया मैंने,
दिल मे उठी टीस को आज फिर समझाया मैंने.

खाव्ब बन कर मेरी आँखों मे समाने वाले,
तेरे यादों की  टीस से महफिल को सजाया मैंने.  

आंशु ठहरे हैं मेरी पलकों पे शबनम की तरेह,
अश्कों मे बसी टीस को दिल भर के रुलाया मैंने.

कौन कहते है तेरे बगैर सिर्फ़ तनहा है हम,
अपने लहू की टीस से तेरे अक्स को  बनाया मैंने.

कोई रात  kutthee नही युगों मे बदल जाती है जब,
टीस से सजी तन्हाई को तेरे कंधे का पता बताया मैंने.

अंधेरों मे जब जब करते हैं ख़ुद से बातें  हम,
मोह्ह्ब्त की टीस को गीतों मे गुनगुनाया मैंने.

क्या शोला क्या चिंगारी ज्लायगी मेरे इस दिल को,
जिस्मोजान मे दबी टीस को तेरे स्पर्श का एहसास कराया
मैंने.

seema gupta

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“जरूरी तो है”

जरूरी तो है”

मुजको मिले तेरा प्यार ये जरूरी तो है,
तेरे दिल पे हो मेरा इख्त्यार ये जरूरी तो है,


दर्द कितना भी सताये है, मुजे पर वो तेरा है,

तेरे गम मे हो मेरा दामन तार तार ये जरूरी तो है.


एक पल तेरे बगैर सोचु भी तो मैं कैसे,

हर घड़ी हो तेरा मेरा साथ ये जरूरी तो है


जिसकी झलक पाने को सदयीओं से ये ऑंखें थमी हैं,

मैं करू उसका जिन्दगी भर इंतजार, ये जरूरी तो है.


तू है मेरे सांसों मे मेरी हर नब्ज कहती है,

मैं करूं तुजे हर पल टूट के प्यार ये जरूरी तो है.

ये इंतजार भी तेरा, ये आंसू भी तेरा, ये गम भी तेरा…..

ये प्यार भी तेरा , ये ऐतबार भी तेरा ये………….
फिर क्यों न करूं किस्मत से तकरार , ये जरूरी तो है.

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“ऐसे ही”

ऐसे ही हम क़रीब नही आ गए होंगे,
रब ने ही यूं तकदीर बनाई हुई होगी…
ऐसे ही हम बाँहों मे समाये नही होंगे,
किस्मत ने वजह ज़रूर कोई पाई हुई होगी…
ऐसे ही हम ने अपनी बीती को बताया नही होगा,
हमदर्द बन के तुम जब तलक नही आयी हुई होगी…
ऐसे ही दिल की गहराईओं में तुम समाई नही होती,
कोई तो तेरी बात दिल को मेरे लुभाई हुई होगी….
ऐसे ही मेरे पास चली आओ तुम एक दिन,
वरना ये ज़िंदगी मेरी ऐसी ही गंवाई हुई होगी………!
"seema Dani"

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“कर गयी”



तेरी कही एक बात मेरे जिगर में उतर गयी,
एक काम था बचा हुआ वह काम कर गयी…
कब से भटक रहा था मैं सहरा में प्यार के,
शिद्दत की प्यास थी जो वो एक -दम उतर गयी…
तन्हा उदास राहों का मंजर कुछ अजीब था ,
आहट मगर तेरी मेरी जिन्दगी मे छाव कर गई…
कुछ टूट के तड़प के दिल बिखर रहा था जब ,
तुम थाम के आगोश मे बदहवास कर गई …

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“नयी”


“ज़िंदगी” हो तुम्हारे साथ नयी,
दिन नया हो हमारी रात नयी…..
पिछली बातों को भूल जाएँ हम,
जब भी हो बात सारी बात नयी…….
अब न आयें वो दिन गुज़र जो गए,
हर घड़ी हो तुम्हारे साथ नयी……..
हम पुराने रिवाज ठुकरादें,
सारे रिश्तों की सारी जात नयी ……..

आज बिछने दो ज़िंदगी की बिसात,
न शह हो जहाँ ना मात नयी…..
वो जो तुमसे है दिल लगा बैठा ,
तेरे घर लाएगा बारात नयी….

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“बातें “

तुम से कहनी हज़ार हैं बातें,
लफ्ज़ कुछ, मगर बेशुमार हैं बातें…
तुम जिगर में उतरती जाती हो,
जो लिखी हमने अश्कबार हैं बातें…
अब दूर तुमसे रहा भी नहीं जाता,
फिर वो ही पहलू -ऐ -यार हैं बातें…
राज-ऐ-दिल लिए भटकते हैं तुम बिन,
क्या करें इस कदर बेकरार हैं बातें…

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“यूँही बस



 
तुम मुझ से बोलती रहीं …चुप चाप यूँही बस,
दिल साथ साथ खोलती रहीं …चुप चाप यूँही बस
.
तड़पा दिया है प्यार ने हमदर्द के मुझे,
ज़ख्मों पे हाथ रख दिया … चुप चाप यूँही बस.
क्यों लग रहा है दिल को तुम हो आसपास ही कहीं,
आ जाओ मेरे सामने … चुप चाप यूँही बस.
कुछ तो ज़रूर है जो हमे यूं हो रहा है ये,
तुम ही ज़रा बतादो ना … चुप चाप यूँही बस.
तुमको भी क्या वो हो रहा जो हमको हो गया,
खामोश सा एक इंकलाब …चुप चाप यूँही बस.

अब तलक कहाँ थी तुम मिलीं क्यों नहीं मुझे,
मैं सोचता ही रह गया …चुप चाप यूँही बस………

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“कर के “

“कर के”

 

तुमने तसल्ली पा ली थोडी देर बात कर के,
मेरी तिशनगी बढा दी, ये ज़रा सा साथ कर के ……..
कभी वह भी दिन आए, तेरे सामने मैं बैठूं,
यूँ ही साथ साथ चलते यूँ, सारी बात कर के ………
हुआ इस कदर नसीब वाला, तेरी अंजुमन में आ के,
मेरे दर्द-ऐ-दास्ताँ को, जगह दी उन्हें अपने हाथ कर के…

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“अय्याम ने”

“अय्याम ने”
मैं यहाँ बेचैन हूँ तुम वहाँ बेताब हो,
किस जगह लाकर मिलाया है हमें अय्याम ने…
हों कई ऐसे भी जो रहते रहे हो इस तरह,
और रुबाई हो लिखी कोई उमर खय्याम ने…
रात भर जागा किए हैं तेरी यादों के तुफैल,
कितने ख्वाबों को बुना है इस दिले नाकाम ने…
तेरे आने की ख़बर हैं दिल में जागी है उमंग,
कितने दीपक ला जला डाले हैं मेरी शाम ने…
याद करने को नहीं आता है दिल दुःख के वह दिन,
और क्यों तमको नहीं लिखा है मेरे नाम ने….
फिर भि फरमाइश किया है उसको मेरी जान ने,
और किया बदनाम दानी को है उसके काम ने…
अब तड़पता दिल है दानी का बहुत उसके लिये,
कह रहा है तुमसे आ जाओ अचानक मेरे सामने…

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“क्षनीकाएं”

 

“तेरा प्यार”

“एक दर्द ,

एक वेदना ,

एक कसक , तड़प ,

और बेशुमार आंसू ”

 

 

“तेरी याद”

” वो लम्हे ,

वो गुजरे पल ,

वो अधूरा स्पर्श,

और एक अंतहीन इंतजार ”

 


“तेरा साथ”

ये धुंधला साया ,

ये काली परछाई,

लम्बी तनहाई,

और एक अधूरी आस “

 

 


 

“तेरी वफा “

“वो झूठे वादे ,

वो टूटती कस्मे ,

वो बेवजह इल्जाम ,

और मेरा अँधा विश्वास ”


‘तेरा वजूद”

“मेरी बोजिल आहें,

मेरी तड़पती बाहें,

मेरी बिख्लती ऑंखें,

और मेरी डूबती सांसें”

 

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“तन्हाई”

“तन्हाई”

“तन्हाई”

“तन्हाई”

काँटों की चुभन सी क्यों है तन्हाई
सीने की  दुखन  सी  क्यों   है  तन्हाई,

ये  नजरें  जहाँ  तक  मुझको  ले  जांयें ,
हर  तरफ  बसी  क्यों  है  सूनी  सी   तन्हाई

इस  दिल  की  अगन  पहले  क्या  कम  थी ,
मेरे  साथ  सुलगने  लगती  क्यों  है  तन्हाई

आंसू  जो  छुपाने  लगता  हूँ  सबसे ,
बेबाक  हो  रो देती  क्यों   है  तन्हाई

तुझे  दिल  से  भुलाना  चाहता  हूँ ,
यादों के भंवर मे उलझा देती क्यों है तन्हाई 

एक  पल  चैन  से  सोंना  चाहता  हूँ ,
मेरी  आँखों मे जगने लगती क्यों है तन्हाई 

तन्हाई से दूर नही अब रह सकता,

मेरी सांसों  मे,  इन  आहों मे,
मेरी रातों मे,  हर बातों मे,
मेरी आखों मे, इन ख्वाबों मे,
कुछ अपनों मे, कुछ सपनो मे ,
मुझे अपनी सी लगती क्यों है तन्हाई ????

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“क्यों है”

“क्यों है”

तेरे बगेर तनहा जिन्दगी मे मेरी कुछ कमी सी क्यों है ,

तेरी हर बात मेरे जज्बात से आज फ़िर उलझी सी क्यों है…

तु मुझे याद ना आए ऐसा एक पल भी नही संवारा मैंने,

गुजरते इन पलों मे मगर आज फ़िर बेकली सी क्यों है……

बेबसी के लम्हों मे आंसुओं का वो मंजर गुजारा मैंने ,

उठती गिरती पलकों मे मगर आज फ़िर कुछ नमी सी क्यों है………

मोहब्बत मे तेरा नाम लेकर तेरी बेरुखी को भी रुतबा दिया मैंने,

हर एक आहट पे तेरे आने की उम्मीद आज फ़िर बंधी सी क्यों है……….

गिला तुझसे नही बेवफा सिर्फ़ अपनी मज्बुरीयों से किया मैंने,

वक्त से करके तकरार इन सांसों की रफ्तार्र आज फ़िर थमी सी क्यों है……

 

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“अब और”

“अब और”

आँखों की गहराई मे आंसू कहीं दफ़न हो जाया करें ,

हर पल बरस कर सर-ऐ-महफिल तमाशा अब और बनाया ना करें .

अधूरी कहानी , प्यार का अफसाना कुछ भी मेरी ख्वावीश ना बने,

मोहब्बत की बातें मेरी तन्हाईयों को तन्हा अब और कर जाया ना करें.


कौन सी कयामत से गुजरा नही अब तलक ये नादाँ दिल मेरा ,

गम के बदल का रुख मेरी चौखट पे अब और आया ना करें .

कोई मुलाकात, जज्बात, एहसास, अब खंजर बन के दिल मे न चुभें,

वो लम्हा यादों के भवर मे मुझे अब और उलझाया न करें.

किसी माहोल, मंजर, महफिल से अब कोई रुसवाई न मिले मुझको , 

फिर समझाने जिन्दगी रूप बदल बदल के अब और आया न करें

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“लिखें हम “


“लिखें हम “
तेरा अफ़साना लिखें हम , तेरा तराना लिखें हम ,
तेरा आना जाना देख , तेरा इतराना लिखें हम .
तेरी पलकों का झुक जाना , कुछ सोच के घबरा जाना ,
तेरा खिल्खीलाना देखें तो, तेरा शर्माना लिखें हम .
तेरी आँखों की मदहोशी , तेरे लबों के खामोशी ,
तेरी बातें जो सुन लें तो , तेरा चह्चाना लिखें हम .
तेरे चेहरे की ये मस्ती , जैसे फूलों की ताजगी ,
तेरी इस बेखुदी मे फ़िर तेरा लहराना लिखें हम .

कभी यूं रूठ के जाना , कभी आँखों मे ही मुस्काना ,
तेरी इस अदा से फ़िर , दिल का बहलाना लिखें हम .
सांसों को महकती तेरी सुबह , दिल को धड़कती तेरी शामें ,
तेरे प्यार मे डूबे दिन रात का एक फसाना लिखें हम .
आज ये दिल चाहे फ़िर तेरा नजराना लिखें हम ,
जो कभी खत्म ना हो तेरा वो खजाना लिखें हम ….

 

 

 

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“नहीं”

“नहीं”
देखा तुम्हें , चाहा तुम्हें ,
सोचा तुम्हें , पूजा तुम्हें,
किस्मत मे मेरी इस खुदा ने ,
क्यों तुम्हें कहीं भी लिखा नहीं .
रखा है दिल के हर तार मे ,
तेरे सिवा कुछ भी नही ,
किस्से जाकर मैं फरियाद करूं,
हमदर्द कोई मुझे दिखता नही.
बनके अश्क मेरी आँखों मे,
तुम बस गए हो उमर भर के लिए ,
कैसे तुम्हें दर्द दिखलाऊं मैं ,
अंदाजे बयान मैंने सीखा नही.

नजरें टिकी हैं हर राह पर ,
तेरा निशान काश मिल जाए कोई,
कैसे मगर यहाँ से गुजरोगे तुम,
मैं तुमाहरी मंजील ही नही,
आती जाती कोई कोई अब साँस है ,
एक बार दिल भर के काश देखूं तुझे,
मगर तू मेरा मुक्कदर नही ,
क्यों दिले नादाँ ये राज समझा नही …………..

 

 

 

 

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